मशाल कॉम्प्लेक्स मे शायरी नशिस्त का हुआ आयोजन
- उर्दू तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए समय समय पर इस तरह की नशिस्त का आयोजन होना बहुत जरूरी है : अशरफ उस्मानी
देवबंद। बीती रात मशाल कॉम्प्लेक्स के उद्घाटन समारोह के अवसर पर एक शायरी नाशिस्त का आयोजन किया गया जिसमें आमंत्रित शायरों के साथ तालिबे इल्मो ने भी अपने जोहार दिखाए नाशिस्त की सदारत वरिष्ट उर्दू पत्रकार अशरफ उस्मानी सहाब ने की ओर मेहमाने खुसीसी जमियत उलेमा ए हिन्द के जर्नल सेक्रेट्री सैय्याद ज़हीन अहमद रहे।
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नाशिस्त का आग़ाज़ तीलावते कलामे अल्लाह से हुआ इसके बाद नाते पाक का दूर शुरू हुआ जिसके बाद सभी शायरों ने अपना कलाम पैश किया और सभी श्रोताओं ने शायरी की महफ़िल का आनंद लिया साथ ही सभी शायरों की होंसला अफजाई की नाशिस्त मे मौजूद सभी आम और ख़ास के लिए ठण्डे पानी और काफ़ी की व्यवस्था भी मशाल कॉम्प्लेक्स के मेनेजमेंट स्टाफ की और से की गई थी जिसकी सभी ने भरपूर प्रशंसा की।
कलाम पढ़ने वालों मे, जकी अंजुम सिद्दीकी, चौकस देवबंदी, वाली वकास, काशीफ अख्तर, रूस्तम जव्वाद, चांद अंसारी, सहित काफ़ी शायरों ने अपने शेरों पर दाद वसूली वहीँ अखिर मे सदारत कर रहे राष्टीय सहारा के ब्यौरो चीफ़ उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार अशरफ उस्मानी ने अपना सदारती ख़िताब किया और उर्दु ज़बान के दमन की दास्ताँ ब्यान कर सभी को चौंकने वाले खुलासे किए।
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उन्होंने बताया कि इस साल पूरे देश मे अनेकों बड़े मुशायरों को करने की परमिशन नही होना दर्शाता है कि उर्दू तहज़ीब व उर्दू ज़बान पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं उदहारण के तोर पर देवबन्द नगर का ही मुशायरा जो इस साल नही हो सका उन्होंने कहा कि इस माहौल मे उर्दू से मौहब्बत रखने वालों के बहुत जरूरी है कि यदि बड़े बड़े मुशायरे नही हो सकते हैं तो इस तरह की छोटी छोटी नाशिस्त का आयोजन कर उर्दू तहज़ीब और उर्दू जबान का तहाफ्फुज जरूरी है।
लेकिन जहां तक मुझे याद है कि उर्दू दिवस के अवसर पर मेने इसी देवबंद नगर के सबसे बड़े उर्दू के शायर डाॅ नवाज देवबंदी साहब का इन्टरव्यू किया था और उर्दू के फरोग के हवाले से उन्होंने एक बात कही थी कि सरकारें किसी भी ज़बान को ऑक्सीजन तो दे सकती हैं जिन्दा नही रख सकती डॉक्टर साहब ने यूं भी कहा था कि। बिला सबब ही मियां तुम उदास रह्ते हो। तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फ़ासला कम है।
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वहीँ मशाल कॉम्प्लेक्स की मेनेजमेंट कमेटी के सभी सदस्यों ने इस अवसर पर उपस्थित सभी महमानों का ख्याल रखा और मौलवी महमूद ने कहा कि आने वाले मे समय भी इस प्रकार की नाशिस्तों का आयोजन किया जायगा जिस का उदेश्य यही होगा कि उर्दू अदब को जिंदा रखने के लिए उलेमाओं की ख़िदमत को नज़र अंदाज़ नहीं किया जाए उर्दू ज़बान का तहाफ्फुज़ हम सब का मिल्ली और शरई फ़रीजा भी है ।
रिपोर्ट - दीन रज़ा