साप्ताहिक बाजार लगाने के बुहत से स्थान देवबंद मे मौजूद हैं

साप्ताहिक बाजार लगाने के बुहत से स्थान देवबंद मे मौजूद हैं

  • बुध बाजार यानी साप्ताहिक बाजार को लेकर राजनीति करने वाले को गरीबों की रोज़ी रोटी की चिंता भी करनी चाहिए
  • सेंकड़ों गरीबों व माध्यम वर्गीय परिवारों का रोज़गार साप्ताहिक बाजारों से जुड़ा हुआ है
  • क्षेत्र मे रोज़गार की भारी कमी है तो जमे जमाए रोज़गार उजाड़ कर देश का कौनसा भला कर लेंगे हमारे जनप्रतिनिधि या आला अधिकारीगण? 

देवबंद। आज 7 माई दिन बुधवार को लगने वाला साप्ताहिक बाजार आज भी नही लग सका हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों के बिके हुये ज़मीर ने अधिकारियों को ज्ञापन देने की औपचारिकता तो हफ्तों पहले ही पूरी कर दी थी मगर आज भी साप्ताहिक बाजार का ना लग पाना हमारे जनप्रतिनिधियों की संवेदन शीलता को दर्शाता है वहीँ नगर पालिका देवबंद अपनी अर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करने के लिए बिल्कुल संवेदन शील नहीं है और आला अधिकारी सत्ता की सेवा मे दीन रात कमर तोड़ मेहनत कर रहे हैं। 

बीते सप्ताह नगर पालिका परिषद देवबंद ने कहा था कि जल्द दूसरी जगह पर बुध बाजार के लिए जगह तलाश कर साप्ताहिक बाजार लगवाया जाएगा मगर नगर पालिका परिषद देवबंद ने अपनी और कोई दिन या तारीख़ नही बताई की कब तक जगह तलाश कर ली जाएगी या साप्ताहिक बाजार लगाने के लिए कोई चांद का टुकड़ा देवबंद नगर मे लाकर उस पर बुध बाजार लगवाया जाएगा। 

वहीँ बात करें तो देवबंद नगर मे पहले से अनेकों स्थान मौजूद हैं जहां पर साप्ताहिक बाजार लगाया जा सकता है सबसे पहला और सबसे सुरक्षित स्थान उर्दू दरवाज़ा है जहां पर नगर पालिका परिषद देवबंद रविवार के दिन उर्दू बाजार के नाम से साप्ताहिक बाजार लगवाया जा सकता है जहां पर भरपूर स्पेस सभी दुकानदारों को मिलेगा लेकिन नगर पालिका परिषद देवबंद को अपने लावारिस पड़े संसाधनो को हटाना पड़ेगा। 

वहीँ बुध बाजार के लिए असगारीया मदरसे के निकट अगर देवबंद के कबूतर बाजों को पशु क्रुरता अधिनियम का पाठ क्षेत्रीय अधिकारी पढ़ा दें तो साप्ताहिक बाजार के लिए असगारीया चौक से कब्रिस्तान की तरफ जाने वाले रास्ते पर साप्ताहिक बाजर लगाया जा सकता है जहां विवाद की कोई शक्ल कभी उत्पन नही होगी और ना मैन बाजार मे जाम की समस्या पैदा होगी। 

इसके अतिरिक्त देवबंद नगर मे बडजिय्याउलहक के नाले से तलहैडी चुंगी तक ऑन रोड़ साप्ताहिक बाजार लगाने के लिए अच्छी खासी जगह उपलब्ध है मगर सेंकड़ों गरीबों व माध्यम वर्गीय परिवारों के रोज़गार की चिंता ना तो हमारे जनप्रतिनिधियों को है और ना सत्ता परस्त अधिकारीयों को है सबसे ज्यादा दिलचस्प ये तो है कि साप्ताहिक बाजार को लेकर जो चर्चा होनी चाहिए थी उसको लेकर सभी के मुह मे दही जमा हुआ है। शेष क्रमश :

रिपोर्ट - दीन रज़ा 







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